Thursday, October 10, 2024
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अध्यात्म विद्या एवं ऋषि परंपरा विषय पर राष्ट्रीय स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया ।


BOL PANIPAT : जीटी रोड पर स्थित आईबी पीजी महाविद्यालय में संस्कृत विभाग की ओर से अध्यात्म विद्या एवं ऋषि परंपरा विषय पर एक राष्ट्रीय स्तरीय सेमिनार का आयोजन किया गया ।यह आयोजन ऑनलाइन माध्यम से कराया गया। इस वेबीनार में 100 से अधिक लोग प्रतिभागी रहे। आयोजन में मुख्य वक्ता के रूप में भोपाल के वैदिक विश्वविद्यालय से आचार्य नीलिम्प त्रिपाठी रहे। कार्यक्रम का प्रारंभ प्राचार्य डॉ अजय गर्ग के वक्तव्य से हुआ । प्राचार्य ने अपने वक्तव्य में अध्यात्म के बारे में बताते हुए उसे विज्ञान से भी जोड़ा , उन्होंने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान का एक गहरा संबंध है । जहां आध्यात्मिकता व्यक्ति के  व्यक्ति के जीवन में देवत्व लाकर उसे सुख प्रदान करने में सहायक है, वही दूसरी तरफ विज्ञान का लक्ष्य प्रकृति तथा पदार्थ में छिपी शक्तियों की जानकारी प्राप्त करना तथा मनुष्य के जीवन में भौतिक सुख सुविधाएं प्रदान करना है। प्राचार्य महोदय ने अपने वक्तव्य में बताया की जहां विज्ञान को धर्म से मानवीयता की सीख लेने की आवश्यकता है वही धर्म के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धतियों के प्रयोग की भी आवश्यकता है। इसी क्रम में मुख्य वक्ता डॉक्टर निलिम्प त्रिपाठी जी ने अध्यात्म के बारे में अवगत कराते हुए कहा की आध्यात्मिक विद्या दैवीय विद्या है यह स्वयं का ज्ञान करवाने वाली है। अध्यात्म से बहुत सारे अध्ययन का ज्ञान सहज रूप से प्राप्त होता है । उन्होंने कहा कि धर्म मोक्ष का साधन है तथा मोक्ष का अर्थ मोह का त्याग करना है । शाश्वत सुख को प्राप्त करने वाला व्यक्ति आध्यात्मिक होता है। बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं होती तथा वास्तविक धन वही है जो साधनों की पूर्ति कर दे, जैसे किसी पर्वत पर जहां आपके पास कुछ भी खाने पीने के लिए नहीं है ,केवल मात्र रुपया है तो आप उस रुपए को नहीं खा सकते, आपको खाने के लिए खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होगी ऐसी स्थिति में वास्तविक अर्थ वह भोजन ही है। उन्होंने ऋषि परंपरा के बारे में बताते हुए कहा की हमारा देश भारत ज्ञान के लिए प्रकाशित सूर्य की किरणों के रूप में स्थित है । यहां पर केवल पुरुष ही नहीं बल्कि मैत्रेयी, गार्गी ,अपाला जैसे स्त्रियां भी ज्ञान की प्रतिमा रही हैं तथा यह स्त्रियां भी ऋषि परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं । अपने वक्तव्य की कड़ी में उन्होंने चांद्रायण व्रत के महत्व को तथा ब्रह्म मुहूर्त में उसने के महत्व को भी बताया ।

उन्होंने बताया गुरु केवल वह नहीं है जो हमें शिक्षा देता है बल्कि गुरु के 6 प्रकार हैं जैसे प्रेरणा देने वाला , वक्ता ,ज्ञाता ,शिक्षा देने वाला ,अध्यात्म का ज्ञान देने वाला आदि। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मदालसा जैसी माता तथा वेदव्यास जैसे विद्वान का भी जिक्र किया , उन्होंने कहा कि वेदव्यास वे ऋषि हैं जिन्होंने वेदों का ज्ञान बहुत ही सरलता से सामान्य लोगों तक पहुंचाया ।अपने वक्तव्य में चरित्र को सर्वोपरि बताते हुए त्रिपाठी जी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का चरित्र उसके द्वारा अर्जित किए गए धन ,विद्या, यश , सौंदर्य , कुल इत्यादि से कहीं ज्यादा बढ़कर है ।

अतः व्यक्ति को हमेशा अपने चरित्र एवं अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए । संस्कृत विभाग की संचालिका प्रोफेसर सोनिया वर्मा ने कार्यक्रम में आए हुए मुख्य वक्ता ,सभी प्रतिभागियों,  प्राचार्य महोदय तथा अपनी तकनीकी टीम का धन्यवाद करते हुए कहा की अध्यात्म का अर्थ या आध्यात्मिक होने का अर्थ भगवा कपड़े पहन लेना नहीं है बल्कि अध्यात्म तो स्वयं का अध्ययन है । आध्यात्मिकता का अध्ययन सकारात्मक मनोविज्ञान के रूप में किया गया है । अध्यात्म अपने आप से जुड़कर रहने तथा हमेशा आनंद का अनुभव करने का साधन है ।

उन्होंने कहा – भारत में प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व रहा है , यह सभी समाज के पथ प्रदर्शक माने गए हैं । इन ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मांड के रहस्य को तथा श्रेष्ठ विज्ञान को अध्यात्म से जाना है ।कार्यक्रम की संयोजिका प्रोफेसर सोनिया वर्मा रही तथा तकनीकी टीम में प्रोफेसर विनय भारती एवं प्रोफेसर सुखजिंदर सिंह की भूमिका सराहनीय रही। इस वेबीनार में उपस्थित प्रतिभागियों ने भी अपने प्रश्नों के माध्यम से बढ़ चढ़कर भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य डॉ अजय गर्ग ने संयोजिका सोनिया वर्मा तथा टेक्निकल टीम को सफल आयोजन की बहुत-बहुत बधाई दी।

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