Wednesday, February 19, 2025
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कृषि विज्ञान केंद्र, ऊझा में “धान की सीधी बिजाई तकनीक” पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित.

By LALIT SHARMA , in DIPRO PANIPAT PRESS RELEASE , at June 10, 2024 Tags: , , , ,

-किसान धान की सीधी बिजाई कर ले लाभ

-मेरा पानी मेरी विरासत योजना के तहत धान की सीधी बजाई करने पर मिलती 4 हजार की वित्तीय सहायता

-कार्यक्रम में सीधी बिजाई को लेकर वैज्ञानिकों ने किए अपने-अपने सुझाव सांझा

BOL PANIPAT , 10 जून। कृषि विज्ञान केंद्र, ऊझा मे सोमवार को “धान की सीधी बिजाई तकनीक” पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कृषि विज्ञान केंद्र व अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ संयोजक डॉक्टर राजबीर गर्ग ने की। उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि धान की सीधी बिजाई आज समय जरूरत है क्योंकि धान की सीधी बिजाई से पानी की बचत के साथ श्रम, ऊर्जा व ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है। इस विधि से बिजाई करने के लिए किसानो को प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए क्योंकि इसमे कई एसे बिंदु हैं जिसके बारे में ज्ञान होना जरूरी है ।
इस विधि से पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1121, पी बी 1718, पी बी 1885 आदि किस्मों की बिजाई कर सकते हैं। इस विधि से बीजाई करने में खरपतवार एक मुख्य समस्या होती थी, परंतु अब वैज्ञानिकों ने ऐसे खरपतवारनाशी निजात कर दिए हैं जिससे लगभग हर एक प्रकार के खरपतवारों पर नियंत्रण किया जा सकता है। उन्होंने किसान से अपील की कि वे अंधाधुंध खरपतवार नाशक का प्रयोग न करें बल्कि खरपतवार के प्रकार के हिसाब से वैज्ञानिकों व कृषि विकास अधिकारी के परामर्श पर ही स्प्रे करें।
इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉक्टर परोलॉय देव ने बताया कि धान की सीधी बिजाई दो विधियों से कर सकते हैं। दोनों विधियों में किसानो के अलग-अलग अनुभव हैं। धान की तर-बतर अवस्था में बिजाई करने पर खरपतवारनाशी पेंडिमेथलिन 30 इसी को 1200 मी ली प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए। बीज की गहराई 3-5 सेंटीमीटर तक ही रखे। ज्यादा गहराई पर बीज बोने मे जमाव मे कमी आ सकती है। सुखी विधि से बिजाई करने में गहराई 2-3 सेंटीमीटर ही रखें व ऊपर सुहागा न लगाए बल्कि खुड़ खुले छोड़कर तुरंत पानी लगाए व पैर थमने पर दो-तीन दिन के अंदर पेंडिमेथलिन या टॉपस्टार का प्रयोग कर सकते हैं।
इस अवसर पर आई आर आर आई के वैज्ञानिक डॉक्टर स्वतंत्र कुमार दुबे ने हरियाणा के पांच जिलों में खेत में ट्यूबवेल पर लगे पानी के मीटर के नतीजों को किसानों के साथ सांझा करते हुए बताया की रोपित धान की बजाए सीधी बीजित धान में कम पानी की जरूरत होती है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वें धान की सीधी बिजाई को अपनाएं, जिससे हम पानी जैसी बहुमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ी को दे सके।
इस अवसर पर केंद्र वैज्ञानिक डॉक्टर सतपाल सिंह ने बताया कि धान की सीधी बिजाई तकनीक पर केंद्र लगातार प्रशिक्षण/जागरूक कार्यक्रम आयोजित करता है। इसी कड़ी में केंद्र द्वारा किसानों के खेत में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन प्लांट भी लगाए गए हैं। उन्होंने बताया कि पानीपत जिले में लगभग 80 हजार हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है, जिसमें भूमिगत जल का काफी दोहन होता है। पानीपत जिले के संभालखा, बापौली व सनौली पहले ही रेडजॉन कैटेगरी में जा चुके हैं। समय की मांग है कि हम फसल विविधीकरण की तरफ आगे बढ़े, जिसमें सब्जियों की विशेष भूमिका हो सकती है। अगर धान की खेती करनी है तो धान की सीधी बिजाई में धान की कम अवधि किस्में जैसे पीबी 1847, पीबी 1509, पीबी 1692, पीआर 126 आदि किस्मों का प्रयोग करें।
इस अवसर पर डॉक्टर मोहित सहल ने बताया कि हरियाणा सरकार ने डीएसआर को बढ़ावा देने के लिए मेरा पानी मेरी विरासत योजना शुरू की हुई है जिसमें धान की सीधी बजाई करने पर 4 हजार की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, अतः सभी किसानों को अपना पंजीकरण अवश्य करवाना चाहिए। उन्होंने किसानों को उनकी खेती का लेखा-जोखा रखने के महत्व के बारे मे भी बताया व उन्हे लेखा-जोखा रखने के लिए प्रोत्साहन किया।
इस मौके पर केंद्र के वैज्ञानिक कुलदीप डुडी, जसवीर सैनी, विजेंद्र सिंह, सतीश रावल, बिट्टू, जोगेंद्र, रमेश आदि ने भी अपने विचार सांझा किए।

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