“स्वतंत्रता संघर्ष का सामाजिक आधार : हरियाणा पुनरावलोकन” विषय पर राष्ट्रीय स्तरीय आनलाइन conference का आयोजन
BOL PANIPAT : आईबी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पानीपत में इतिहास विभाग एवं आइक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में उच्चतर शिक्षा विभाग,पंचकूला हरियाणा द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय स्तरीय आनलाइन conference का आयोजन माइक्रोसॉफ्ट टीम्स प्लेटफार्म पर किया गया जिसका विषय “स्वतंत्रता संघर्ष का सामाजिक आधार : हरियाणा पुनरावलोकन” रहा । कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय प्रबंध समिति के प्रधान धर्मवीर बत्रा, महासचिव लक्ष्मी नारायण मिगलानी , आचार्य डॉ अजय कुमार गर्ग, डॉ मधु शर्मा , प्रो. पीके नरूला, डॉ रामेश्वर दास, डॉ मोहम्मद इशाक,डॉ. किरण मदान, डॉ पूनम मदान, डॉ. विनय वाधवा, डॉ. अर्पणा गर्ग, डॉ. निधि मल्होत्रा, प्रो. माधवी, प्रो अश्वनी गुप्ता द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए दीप प्रज्वलित करके व मां सरस्वती वंदना के साथ किया गया। इस सम्मेलन के शुभारंभ करते हुए धर्मवीर बत्रा ने कहा कि हमारा महाविद्यालय शोधार्थियों एवं अध्यापकों को अनुसंधान के लिए प्रेरित करता है और इसी उद्देश्य से महाविद्यालय अलग-अलग विषय पर राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयजित करता रहता है चाहे वह ऑनलाइन हो या ऑफलाइन । इस सम्मेलन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अजय कुमार गर्ग ने महाविद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला और कहा कि 1966 से पहले हरियाणा पंजाब का ही एक भाग था ।इसलिए स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा के योगदान को कम लोग जानते है। हरियाणा में स्वतंत्रता की चिंगारी 10मई, 1857 को अम्बाला छावनी में प्रज्वलित हुई थी। । इस संग्राम में हरियाणा प्रदेश से विभिन्न वर्ग के लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। इस सम्मेलन के संयोजक व इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रामेश्वर दास ने कहा कि हरियाणा का नाम लेते हैं हमारे मस्तिष्क में एक ऐसे प्रदेश की छवि उभर कर आती है जिसकी पुरातन धरोहर समृद्ध है और वर्तमान में भी जो देश के समृद्ध राज्य में से एक है । उन्होंने यह भी कहा कि भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है । हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हरियाणा के वीरों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी देश की सीमाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इस सम्मेलन में जो परिचर्चा होगी उससे आजादी से संबंधित वो तथ्य सामने आँएगे जिसका संज्ञान युवा पीढ़ी को नहीं है। सह संयोजिका डॉ. किरण मदान ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के माध्यम से भारत अपने लोगों की उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का जश्न मना रहा है | उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणावासियों ने अपने अपने तरीके से बलिदान दिए और इस स्वतंत्रता के युग में साहित्यकारों और लेखकों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया। सह -संयोजिका डॉ पूनम मदान ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक अनोखी मिसाल है । इसमें सभी वर्गों के लोगों ने जाति, धर्म से ऊपर उठकर एवं एकजुट होकर एक उद्देश्य के लिए काम किया । इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष प्रो.भूपेंद्र यादव (पूर्व प्रोफेसर , इतिहास विभाग ,अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, बेंगलुरु) रहे और उन्होंने ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय इतिहास का वह युग है जो पीड़ा, कड़वाहट , आत्मसम्मान, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे हैं और इस स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में हरियाणा राज्य के शहीदों का अहम योगदान है । सम्मेलन के मुख्य वक्ता डॉ के एल टुटेजा (पूर्व प्रोफेसर, इतिहास विभाग , कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी कुरुक्षेत्र) ने कहा कि राष्ट्रवाद का अर्थ एक ऐसी एकता की भावना या सामान्य चेतना है, जो राजनीतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, भाषीय, सांस्कृतिक व मनोवैज्ञानिक तत्वों पर आधारित रहती है । यह वह भावना है जिससे प्रेरित होकर लोग एक निश्चित एवं सशक्त राष्ट्रीयता का निर्माण करते हैं।
पहले तकनीकी सत्र के अध्यक्ष डॉ राजेश कुमार (डायरेक्टर, इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च, मिनिस्ट्री आफ एजुकेशन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया) ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में देश का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है जिसने इस संघर्ष में भाग ना लिया हो और स्वतंत्रता आंदोलन की आग में पूरा हरियाणा जल उठा था। इसके बाद मध्यवर्ती सत्र के मुख्य वक्ता प्रो. संजय सुबोध (इतिहास विभाग, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद ) ने कहा कि हमारे पूर्वजों व वीर सेनानियों की कुर्बानियों की बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं । अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके बलिदानों से प्रेरणा लेकर देश के नवनिर्माण में अपना योगदान दें । उन्होंने क्षेत्रीयवाद के विषय पर भी प्रकाश डाला । मध्यवर्ती सत्र की अध्यक्षता डॉ. सुनीता पठानिया (पूर्व प्रोफेसर, इतिहास विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र) ने की और कहा कि हरियाणा का इतिहास सहासी, धर्मी और गर्वनवित लोगों के संघर्ष की गाथा है । स्वतंत्रता आन्दोलन में भारत माता के सपूतों का बलिदान उनकी बहादुरी और साहसपूर्ण वीरता को प्रदर्शित करता है। दूसरे तकनीकी सत्र के अध्यक्ष डॉ रामजस स्वामी (पूर्व सहयोगी, पूर्व प्रोफेसर ,इतिहास विभाग, डीएवी विद्यालय पुंडरी ,कैथल ) ने कहा कि आजादी की लड़ाई में हरियाणा प्रदेश के पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का भी विशेष योगदान रहा । सन 1857 से लेकर सन 1947 तक की काल अवधि में हिसार, सिरसा, अंबाला रोहतक, गुड़गांव , आदि क्षेत्रों में ऐसी महिलाओं की सूचि काफी लंबी बनाई जा सकती है। जिन्होंने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष किया।
इस सम्मेलन के समापन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ.एस के चहल (प्रोफेसर एवं सहायक, इतिहास विभाग , कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र) ने अपने संबोधन में कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए जीवन , परिवार , संबंध और भावनाओं से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था हमारे देश की आजादी और इसके लिए उन्होंने अपनी जान की परवाह भी नहीं की। इस सम्मेलन के मंच का संचालन डॉ. किरण मदान, प्रो. राधिका और प्रो. राहुल कुमार ने कुशलतापूर्वक किया । कार्यक्रम के अंत में डॉ. विनय वधवा ने सभी का धन्यवाद किया । इस कार्यक्रम में देश भर से लगभग 80 शोधपत्र प्राप्त हुए | सम्मेलन को सफल बनाने में डॉ. निधि मल्होत्रा, प्रो. माधवी, प्रो.अश्विनी गुप्ता, डॉ. शर्मिला यादव, प्रो. कनक शर्मा , प्रो. विनय भारती, प्रो. निशा, प्रो. मनीत कौर, प्रो. मनीष, प्रो. सोनल, प्रो. सोनिया वर्मा, प्रो रेखा ,प्रो सुखजिन्दर और प्रो. मुनीश गुप्ता, प्रो. सोनल और प्रो. नीतू भाटिया ने अहम भूमिका निभाई।
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