एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में विश्वविधालय स्तरीय सात दिवसीय राष्ट्रीय सेवा योजना कैंप का दूसरा दिन
–जीवन जीने की कला, अंगदान, फर्स्ट ऐड एवं होम नर्सिंग और तनाव प्रबंधन विषयों पर स्वयंसेवकों ने लिए टिप्स
–ख़ुशी, आनंद, उत्साह और कार्यक्षमता ये सभी वर्तमान के जीवन में निहित है: सुरेन्द्र गोयल ‘जीवन जीने की कला’ प्रशिक्षक
–अंगदान हमारी महानता का सूचक है: डॉ एस एन गुप्ता
–फर्स्ट एड देते समय यह जानना कि क्या नहीं करना है अत्यधिक महत्वपूर्ण है:: डॉ नीना फर्स्ट एड एंड होम नर्सिंग प्रशिक्षक
–सकारात्मक दृष्टिकोण, दृढ़ निश्चय और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख हम तनाव से बच सकते है: रोशन लाल सचदेवा पूर्व मैनेजर पंजाब नेशनल बैंक
BOL PANIPAT , 06 मार्च,
एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में विश्वविधालय स्तरीय सात दिवसीय एनएसएस कैंप के दूसरे दिन विभिन्न विषय के विशेषज्ञों ने जीवन जीने की कला, अंगदान, फर्स्ट ऐड एवं होम नर्सिंग और तनाव प्रबंधन विषयों पर स्वयंसेवकों को टिप्स देकर अपने अनुभव उनके साथ साझा किये । ‘जीने की कला’ में 22 वर्ष का लम्बा अनुभव प्राप्त प्रशिक्षक सुरेन्द्र गोयल ने युवाओं को तनाव मुक्त और आनंद से भरपूर जीवन जीने विषय पर बहुमूल्य टिप्स और व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया । कॉलेज के पूर्व प्रधान और वरिष्ठ शल्य चिकित्सक डॉ एसएन गुप्ता ने अंगदान विषय पर ज्ञान और जानकारी स्वयंसेवकों के साथ बांटी । बीआरएम कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन से पधारी प्रशिक्षक डॉ नीना ने फर्स्ट ऐड एंड होम नर्सिंग पर व्याख्यान दिया । पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व मैनेजर रोशन लाल सचदेवा ने ‘तनाव प्रबंधन’ पर व्याख्यान देते हुए युवा स्वयंसेवकों को तनावमुक्त जीवन जीने के तरीके और सलीके सिखाये । मेहमानों का स्वागत प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा, कैंप सेक्रेटरी डॉ राकेश गर्ग और डॉ संतोष कुमारी ने किया । 5 से 11 मार्च तक चलने वाले इस आवासीय कैंप में कुरुक्षेत्र विश्वविधालय कुरुक्षेत्र से सम्बद्ध 52 कालेजों के 202 स्वयंसेवकों और प्रोग्राम ऑफिसर ने पंजीकरण कराया है । सभी स्वयंसेवकों के रहने और भोजन की पूर्ण व्यवस्था कॉलेज में ही की गई है । कैंप के दूसरे दिन की शुरुआत प्रात: योग और ध्यान शिविर से हुई जिसमें सभी एनएसएस स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया । तत्पश्चात सुबह के नाश्ते के उपरान्त स्वयंसेवकों ने कार्यशाला और व्याख्यान में हिस्सा लिया । कल पहले दिन के अंतिम सत्र में सांस्कृतिक गतिविधियों के उपरान्त विभिन्न कालेजों से पधारे स्वयंसेवकों ने रात्री के भोजन के उपरान्त ‘परिचय सत्र’ में भाग लिया जहाँ सभी स्वयंसेवकों को कैंप में उनके कर्तव्य आबंटित किये गए और उनका मार्गदर्शन किया गया । विदित रहे कि कैंप को एनएसएस सेल, कुरुक्षेत्र विश्वविधालय कुरुक्षेत्र का संरक्षण तथा इसे राज्य एनएसएस सेल उच्चतर शिक्षा विभाग हरियाणा सरकार द्वारा प्रायोजित किया है । मंच संचालन डॉ दीपिका अरोड़ा ने किया । आज एकला नृत्य प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमे स्वयंसेवक विभिन्न गीतों पर जमकर थिरके ।
सुरेन्द्र गोयल पूर्व वरिष्ठ मैनेजर नेशनल फर्टिलाईज़र लिमिटेड पानीपत एंड वर्सिष्ठ ‘जीवन जीने की कला’ प्रशिक्षक ने कहा कि हमने कभी भी इस बात पर गौर नहीं किया है कि हमारे मन में हर पल क्या चलता रहता है । हमारा मन भूतकाल और भविष्य के बीच में डोलता रहता है । यह या तो भूतकाल में जो बीत गया है उस में व्यस्त रहता है या उस भविष्य के बारे में सोचता रहता है जो अभी आया ही नहीं है । असली ज्ञान मन के इसी तथ्य से जागरूक होना है कि हमारे मन में क्या चल रहा है । कितने ही अनगिनत विषयों पर असंख्य पुस्तकें हमें पढने को मिल सकती है लेकिन मन की जागरूकता पुस्तक से नहीं सीखी जा सकती है । मन की एक और प्रकृति है कि यह नकारात्मक विचारों से जकड़ा रहता है । यदि 10 सकारात्मक घटनाओं के बाद एक नकारात्मक घटना हो तो मन नकारात्मकता को खुद में चिपकाए रखता है और यह 10 सकारात्मक घटनाओं को भूल जाएगा । ध्यान द्वारा हम मन की इन दोनों प्रकृतियों से सजग हो सकते है और उसे वर्तमान में उतार सकते है । ख़ुशी, आनंद, उत्साह, कार्यक्षमता ये सभी वर्तमान में हैं । मानव मन बहुत जटिल है और इसके नाज़ुक और कठोर दो पहलु होते हैं । जब हम ध्यान द्वारा मन को उन्नत करते हैं तो मन की नकारात्मकता को पकड़े रखने की प्रवृति अदृश्य हो जाती है और हम वर्तमान क्षण में जीने की योग्यता और क्षमता प्राप्त कर लेते हैं तथा भूतकाल को छोड़ने में सक्षम बन जाते हैं । मानवीय मूल्यवादी, शांतीदूत और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर के बताये मार्ग पर चलकर हम अपने अपने जीवन में आनंद और ज्ञान का संचार कर सकते है तथा मानवीय मूल्यों की स्थापना कर सकता है ।
डॉ एसएन गुप्ता पूर्व कॉलेज प्रधान और वरिष्ठ शल्य चिकित्सक ने ‘अंगदान’ विषय पर बोलते हुए कहा कि हम सभी मरने के बाद भी किसी इंसान को नया जीवन दे सकते हैं और उनके चेहरे पर फिर से मुस्कान ला सकते हैं । हम फिर से किसी को यह दुनिया दिखा सकते हैं । अंगदान करने से हममें एक महान शक्ति पैदा होती है और यह शक्ति अदभुत होती है । इस तरह की उदारता मन की महानता की धोतक है जो न केवल हमको बल्कि दूसरों को भी खुशी देती है । भारत में हर वर्ष लगभग पांच लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा करते हैं । प्रत्यारोपण की संख्या और अंग उपलब्ध होने की संख्या के बीच आज भी एक बड़ा फासला है । अंगदान ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंगदाता अंग ग्राही को अंगदान करता है । दाता जीवित या मृत दोनों हो सकते है । दान किए जा सकने वाले अंग गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंख, यकृत, पैनक्रियस, कॉर्निया, छोटी आंत, त्वचा के ऊतक, हड्डी के ऊतक, हृदय वाल्व और नसे हैं । इस तरह देखा जाए तो एक व्यक्ति कई व्यक्तियों की जान बचा सकता है । अंगदान जीवन के लिए अमूल्य उपहार है और अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की शीघ्र आवश्यकता होती है । भारत में दो लाख व्यक्ति लीवर की बीमारी और पचास हजार व्यक्ति हृदय की बीमारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । इसके अलावा लगभग एक लाख पचास हजार व्यक्ति गुर्दा प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा करते हैं जिनमें से केवल पांच हजार व्यक्तियों को ही गुर्दा मिल पाता है । अंगदान की बड़ी संख्या में जरूरत होते हुए भी भारत में हर दस लाख में सिर्फ 0.08 डोनर ही अपना अंगदान करते हैं । भारत के मुकाबले अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी में 10 लाख में 30 डोनर और सिंगापुर, स्पेन में हर 10 लाख में 40 डोनर अंगदान करते हैं । इस मामले में दुनिया के कई देशों के मुकाबले भारत काफी पीछे है और इसकी बड़ी वजह जागरूकता का अभाव होना है । लाखों व्यक्ति अपने शरीर के किसी अंग के खराब हो जाने पर उसकी जगह किसी के दान किये अंग का इन्तजार करते रह जाते हैं । ऐसे व्यक्ति अभी भी जीना चाहते हैं लेकिन उनके शरीर का कोई अंग अवरूद्ध हो जाने से उनकी जिन्दगी खतरे में आ जाती है । अंग प्रतिरोपित व्यक्ति के जीवन में अंगदान करने वाला व्यक्ति एक ईश्वर की भूमिका निभाता है । अपने अच्छे क्रियाशील अंगों को दान करने के द्वारा कोई अंगदाता आठ से ज्यादा लोगों के जीवन को बचा सकता है । उन्होनें हर एनएसएस कार्यकर्ताओ को कहा कि वे अपने जीवन में आगे बढ़े और अंगदान जैसे पुनीत कार्य के महत्त्व को सभी तक पहुंचाएं ।

डॉ नीना फर्स्ट ऐड एंड होम नर्सिंग प्रशिक्षक ने फर्स्ट ऐड पर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देते हुए सिखाया कि किसी भी बीमारी, चोट या दुर्घटना के लिये चिकित्सक या ऐम्बुलेंस आने से पहले जो राहत कार्य और उपचार किया जाता है उसे ही प्राथमिक सहायता कहते है । किसी भी घायल या बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुँचाने से पहले हमें उसकी जान बचाने के लिए अच्छे से प्रयास करना चाहिए और इसका ज्ञान हर एनएसएस स्वयंसेवक को अवश्य होना चाहिए । आपातकाल में पड़े हुए व्यक्ति की जान बचाने के लिए हम आस-पास की किसी भी वस्तु का उपयोग कर सकते हैं जिससे घायल या बीमार व्यक्ति को जल्द से जल्द आराम मिल सके । यहाँ यह बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि हमें इमरजेंसी के समय क्या करना चाहिए बल्कि इससे । ज्यादा महत्वपूर्ण यह जानना है कि हमें क्या नहीं करना चाहिए क्योंकि गलत चिकित्सा कभी-कभी जानलेवा साबित हो सकती है । प्राथमिक चिकित्सा दम घुटना (पानी में डूबने के कारण, फांसी लगने के कारण या साँस नली में किसी बाहरी चीज के अटकने के कारण), ह्रदय गति रूकना, हार्ट अटैक, खून बहना, शरीर में जहर का असर होना, जल जाना, हीट स्ट्रोक (अत्यधिक गर्मी के कारण शरीर में पानी की कमी होना), बेहोश या कोमा, मोच, हड्डी टूटना और किसी जानवर के काटने जैसी इमरजेंसी अवस्था में दी जा सकती है । एनएसएस में रहकर हम इन बातों को सीखकर एक जिम्मेदार नागरिक होने के दायित्व को पूरा कर सकते है । उन्होनें बिजली के झटके, दम घुटना या डूबने की घटना, ज़हर एवं विष, जनस्वास्थ्य में उपयोगी स्वदेशी साधन और दुर्घटनाएं और प्राथमिक उपचार पर विस्तार से समझाया । रोशन लाल सचदेवा पूर्व मैनेजर पंजाब नेशनल बैंक पानीपत ने ‘तनाव प्रबंधन’ पर बोलते हुए कहा कि तनाव इंसान के जीवन का अटूट हिस्सा है और यह हमें किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए प्रेरित भी कर सकता है । यहां तक कि गंभीर बीमारी, नौकरी छूटना, परिवार में मृत्यु या किसी दर्दनाक घटना से उच्च तनाव भी जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा हो सकता है । तनाव में हम उदास या चिंतित महसूस कर सकते हैं, और परन्तु इससे हम सामान्य व्यवहार करके निपट भी सकते है । यदि हम कई हफ्तों से अधिक समय तक उदास या चिंतित महसूस करते हैं तो विभिन्न थेरेपी, दवा और अन्य रणनीतियाँ इससे लड़ने में हमारी काफी मदद कर सकती हैं । सकारात्मक दृष्टिकोण, उन घटनाओं को स्वीकार करना जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते है, आक्रामक होने के बजाय दृढ़ रहना, क्रोधित, रक्षात्मक या निष्क्रिय बनने के बजाय अपनी भावनाओं, राय या विश्वास पर जोर देंना और अपने समय का अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना तनाव से छुटकारा पाने में हमारी मदद करता है ।
प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने कहा कि इस प्रकार के कैंपो से छात्र-छात्राओं के आत्मविश्वास में तो वृद्धि होती ही है साथ ही उनके मन में देश और समाज को समझने और बदलने का जज्बा भी पैदा होता है । वे सृजनात्मक और रचनात्मक सामाजिक कार्यों में खुद को प्रवृत्त कर सके, स्वयं तथा समुदाय के ज्ञान में वृद्धि कर सके, समस्याओं को हल करने में स्वयं की प्रतिभा का व्यावहारिक उपयोग कर सके – यही इस कैंप का उद्देश्य है ।

डॉ राकेश गर्ग प्रोग्राम ऑफिसर ने कहा कि इस कैंप में स्वयंसेवक वित्तीय, जल संरक्षण, प्रदूषण और पर्यावरण संतुलन, स्वच्छता, लैंगिक समानता, साक्षरता, परिवार कल्याण और पोषण, महिलाओं की स्थिति एवं इसके सुधार के उपाय, आपदा राहत तथा पुनर्वास, समाज में व्याप्त बुराईयाँ, डिजिटल भारत, कौशल भारत, योग आदि जैसे विषयों पर व्यावहारिक ज्ञान एवं प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे । अपने प्रयासों से भविष्य में राष्ट्र के निर्माण में अपना स्थान और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करेंगे ।
इस अवसर पर डॉ संगीता गुप्ता, डॉ संतोष कुमारी, डॉ एसके वर्मा, डॉ मुकेश पुनिया, डॉ राकेश गर्ग, डॉ पवन कुमार, डॉ दीपिका अरोड़ा, प्रो मनोज कुमार, प्रो विशाल गर्ग, प्रो आशीष गर्ग, प्रो सोनिका शर्मा, प्रो पूजा धींगडा, दीपक मित्तल, चिराग सिंगला उपस्थित रहे ।
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