अच्छा स्वयंसेवी समाज और सरकार दोनों के लिए वरदान है: डॉ राकेश गर्ग
-एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में विश्वविधालय स्तरीय सात दिवसीय आवासीय राष्ट्रीय सेवा योजना कैंप का छठा दिन
• रंगोली, काव्य पाठ, भाषण और गायन प्रतियोगिताओं का हुआ आयोजन
• सांस्कृतिक भ्रमण के दौरान स्वयंसेवकों ने किया कृषि विज्ञान केंद्र उझा और चुलकाना धाम समालखा का दौरा
BOL PANIPAT ,10मार्च, एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में चल रहे विश्वविधालय स्तरीय सात दिवसीय आवासीय राष्ट्रीय सेवा योजना कैंप के छठे दिन विविध प्रतियोगिताओं का शानदार आयोजन किया गया जिसमे 52 कालेजों से पधारे स्वयंसेवकों ने रंगोली,काव्य पाठ, भाषण और गायन प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । प्रतियोगिताओं का उदघाटन प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने किया । कैंपसेक्रेटरी डॉ राकेश गर्ग, डॉ संतोष कुमारी औरडॉ एसके वर्माने निर्णायक मंडल की भूमिका अदा की ।मंच संचालन डॉ संतोष कुमारी ने किया ।कैंप के छठेदिन की शुरुआत प्रात: 5 बजे योग और आध्यात्मशिविर से हुई जिसके बाद व्यायाम युक्त खेलों के माध्यम से सभी स्वयंसेवकों ने स्वास्थ्य लाभ हासिल किया। नाश्ते के उपरान्त स्वयंसेवकों ने रंगोली, काव्यलेखन एवंपाठ, भाषणऔरगायन प्रतियोगिताओं में भाग लिया जिसके विजेताओं को कैंप के अंतिम दिन सम्मानित किया जाएगा । रंग-बिरंगे फूल, विकसित भारत 2047, करे योग रहे निरोग, आत्मनिर्भर भारत, इंटरनेट, राम मन्दिरजैसे अनेक विषयों पर स्वयंसेवकों ने सूखे रंगों और फूलों की मदद से रंगोलियाँ बनाई । दोपहर के भोजन के उपरान्त सभीस्वयंसेवकों कोसांस्कृतिकऔर ऐतिहासिक भ्रमण पर ले जाया गया जिसमें उन्होनें कृषि विज्ञान केंद्र उझा और चुलकाना धाम का भ्रमण किया । कृषि विज्ञान केंद्र उझा में स्वयंसेवकों नेपराली के गठ्ठे बनाकर इसे निपटाने की विधि के बारे में जानकारी ली क्यूंकि इससे नप्रदूषण फैलता हैऔर न ही किसानों को कोई परेशानी होती है । धान के अवशेषों या फानों को न जलाकर हम इनको कम्पोस्ट खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते है ।दुनिया में अनेकों मंदिर हैं औरहर एक की अपनी कहानी और रहस्य है। ऐसा ही एक मंदिर पानीपत के समालखा कस्बे से 5किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना गांव में है और अब यहगांव चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध है। अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर को देखने के लिए स्वयंसेवक लालायित देखे गए । स्वयंसेवकों ने रैली निकाल ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
विदित रहे कि चुलकाना धाम वह पवित्र स्थान हैं जहां पर बाबा ने शीश का दान दिया था। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ स्थान माना गया है। चुलकाना धाम का सम्बन्ध महाभारत से जुड़ा हुआ है। पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ था। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुये जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकता थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओलेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाये तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार कियाइसलिये उनको ‘हारे का सहारा’भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिये घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला थाजिससे लीला का असवार भी कहा जाता है।
पानीपत में कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना कृषि के क्षेत्र में कृषक समुदाय के लाभ के लिए प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से संबंधित कार्य को पूरा करने के लिए सीसीएस हरियाणा कृषि विश्वविद्यालयहिसार के तहत सीसीएसएचएयूहिसार और आईसीएआरनई दिल्ली के बीच समझौता ज्ञापन के तहत की गई है। इसका मूल उद्देश्य देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाना और लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है। कृषि विज्ञान केंद्र एक जिला स्तरीय संगठन है जो जिले के कृषक समुदाय को नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण में मदद करता है। यहअनुसंधान संगठन और किसानों के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है जो कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में कृषक समुदाय की स्थान विशिष्ट समस्याओं एवंमुद्दों को हल करने के लिए कार्यरतहै।
प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने कहा कि एनएसएस में रहकर स्वयंसेवकबहुत अच्छे और पुनीत कार्य कर सकतेहैं।युवा अवस्था में अच्छे कार्य करने की क्षमता वैसे भी ज्यादा होती है।प्रदेशके सभी स्वयंसेवी युवा हैं और वे समाज के सबसे गतिशील एवं उर्जावान वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।उन्हें खुद पर गर्वहोना चाहिए कि वे दूसरों के लिए मिसाल है और पर्यावरण के प्रति कितने सचेत है।पराली की समस्या हरियाणा और पंजाब राज्य के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। युवाओं का इस मुद्दे पर आगे आना और कृषि केंद्र जाकर जानकारी प्राप्त कर किसानों को जागरूक बनाना अपने आप में एक सराहनीय कदम है ।
डॉ राकेश गर्ग प्रोग्राम ऑफिसर कहा कि धान और गेहूं की कटाई के बाद लोग खेतों को जल्दी खाली करके दूसरी फसल रोपने के चलते खेतों में ही पराली, फानों और अन्य कूड़े को जला देते हैं।इस पराली को जलाने से भूमि को बहुत क्षति पहुंचती है ।इससे खेतों के आसपास के वातावरण का तापमान बहुत बढ़ जाता है तथा पानी सूख जाने के कारण फसल के लिए पानी की आवश्यकता भी बढ़ जाती है ।खेतों में मौजूद भूमिगत कृषि मित्र कीट तथा अन्य सूक्ष्म-मित्र जीव आग की तपिश से मर जाते हैं और शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ जाने के कारण नई बोई गई फसलों को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।इसके परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरता कम हो जाती है तथा उत्पादन घट जाता है।इससे निपटने के उपाय सुझाते हुए उन्होनें कहा कि जलाने की बजाय किसान सीधी बिजाई का तरीका अपना सकते हैं।वे पिछली फसल की खड़ी पराली के बीच ही अगली फसल रोप सकते है और सूखी हुई खड़ी फसल धीरे-धीरे खाद में बदल कर फायदेमंद साबित होती है।
डॉ संतोष कुमारी ने कहा कि हमें पर्यावरण से स्नेह का रिश्ता बनाकर रखना चाहिए वरना इसके दुष्परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियों को झेलने होंगे ।उन्होनें पराली जलाने से खेत और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को स्थाई बताया और कहा कि इसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है ।
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