अगर गुरू शिष्य से धन तो लेता है लेकिन उसे परमात्मा तक पहुँचने का उपाय नहीं बताता तो वह घोर नरक में जाता है : स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज
BOL PANIPAT : श्री संत द्वारा हरि मन्दिर, निकट सेठी चौक, पानीपत के प्रांगण में नव विक्रमी सम्वत 2082 के उपलक्ष्य के अवसर पर परम पूज्य 1008 स्वामी दयानन्द सरस्वती जी महाराज (मुरथल वाले) की अध्यक्षता में सप्ताह भर चलने वाले संत समागम कार्यक्रम के समापन दिवस पर महाराज श्री ने प्रवचन करते हुए कहा कि अमानी होकर गुरू की सेवा करनी चाहिए, गुरू भगवान से मिलने का द्वार है, इसलिए गुरूद्वारा गुरू भगवान और भक्त के बीच दीवार नहीं है बल्कि द्वार है। ऐसा न सोचें कि शिष्य ही नरक में जाता है, गुरू भी नरक में जाता है। अगर गुरू शिष्य से धन तो लेता है लेकिन उसे परमात्मा तक पहुँचने का उपाय नहीं बताता तो वह घोर नरक में जाता है। नामदेव भी गुरू से प्रार्थना करते हैं कि ठाकुर के दर्शन हो जायें। मन्दिर, गुरूद्वारे में जरूर जाना चाहिए चाहे एक मिनट के लिए जायें। मन्दिर समाप्त हो गए तो हम भी समाप्त हो जायेंगे। यहां तक कि रावण की लंका में भी एक मन्दिर था। जिसमें विभीषण पूजा करते थे। रावण ने व्यवस्था की थी कि जब भी मन्दिर में पूजा पाठ हो तो पूरी लंका में आवाज जाये। जबकि आज तो आवाज आने में पड़ोसी शिकायत कर देते हैं। एक बार मंदोदरी ने पूछा कि जब आप भगवान को मानते नहीं तो विभीषण को मंदिर की इजाजत क्यों दी हुई है। रावण ने कहा कि वेदों में लिखा है कि मंदिर के बिना सारा वैभव नष्ट हो जाता है। इसलिए मंदिर में जरूर जाना चाहिए। प्रधान रमेश चुघ ने आज कथा के आखिरी दिन पर सभी के सहयोग के लिए धन्यवाद व्यक्त किया। इस अवसर पर अटूट भण्डारे का आयोजन किया गया। इससे पूर्व मुख्य अतिथि विजय कुकरेजा (देव प्रोपर्टीज) ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। प्रसिद्ध भजन गायक लेखराज जताना ने भजन गाकर वातावरण को भक्तिमय कर दिया। इस अवसर पर प्रधान रमेश चुघ, किशोर रामदेव, दर्शन लाल रामदेव, पवन चुघ, अमन रामदेव, ईश्वर लाल रामदेव, उत्तम आहूजा, शाम सपड़ा, गोपी मेंहदीरत्ता, सोनू खुराना, बब्बू कत्याल, धर्मबीर नन्दवानी, गुलशन नन्दवानी, सुरेश चुघ, राजेन्द्र सलूजा, हरनारायण जुनेजा, जगदीश चुघ, गोल्डी बांगा, ओमी चुघ, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
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