एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में पुलिस महानिदेशक शत्रुजीत कपूर की प्रेरणा से आयोजित राज्य स्तरीय सात दिवसीय ‘पानीपत महोत्सव तृतीय पुस्तक मेला’ का शानदार समापन.
–समय पर आहार और विरुद्ध आहार से बचाव ही तंदुरस्त जीवन का आधार है: डॉ सांत्वना शर्मा
–शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर की पंचकर्मों द्वारा सर्विसिंग अत्यधिक आवश्यक हैं: डॉ यामिनी गुप्ता
–‘किताबों की दुनिया फिर आएगी अगले साल’ के वायदे के साथ हुआ महोत्सव संपन्न
–हरियाणा पुलिस की पहल, जिला प्रशासन के सानिध्य और नगर निगम पानीपत, जिला परिवहन विभाग पानीपत, महिला बाल विकास पानीपत, पंचायत विभाग पानीपत, राजभाषा अनुभाग इंडियन आयल पानीपत, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा, वन विभाग और आयुष विभाग के सहयोग से हुआ यह आयोजन
–‘नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति पानीपत’ द्वारा कवि गोष्ठी का आयोजन
BOL PANIPAT , 23 अगस्त, एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में राज्य स्तरीय सात दिवसीय ‘पानीपत महोत्सव – तृतीय पुस्तक मेला’ जो हरियाणा पुलिस की पहल, जिला प्रशासन के सानिध्य और नगर निगम पानीपत, जिला परिवहन विभाग पानीपत, महिला बाल विकास पानीपत, पंचायत विभाग पानीपत, राजभाषा अनुभाग इंडियन आयल पानीपत, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग हरियाणा, वन विभाग और आयुष विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया का शानदार समापन हो गया । समापन समारोह डॉ अंशज सिंह महानिदेशक आयुष विभाग की प्रेरणा और मार्गदर्शन में संपन्न हुआ जिसमें बतौर मुख्य वक्ता डॉ सांत्वना शर्मा राजकीय मेडिकल डिस्पेंसरी पंचकूला और डॉ यामिनी गुप्ता राजकीय हस्पताल पंचकूला ने शिरकत की और आयुर्वेद के विभिन्न विषयों पर व्यावहारिक ज्ञान दिया । दोनों ही विद्वान् अपने-अपने विषयों में पारंगत और 20 से अधिक वर्षों का अनुभव लिए हुए थे । अंतिम दिन के प्रथम सत्र का थीम ‘भारतीय आयुर्वेद परंपरा एवं ज्ञान जीवन रक्षा का सूत्र है’ रहा ।
सांयकालीन सत्र में जितेन्द्र छिल्लर म्युनिसिपल कमिश्नर पानीपत की प्रेरणा से और ‘नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति पानीपत’ द्वारा कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें पानीपत रिफाइनरी के इन-हाउस टैलेंट द्वारा कविताओं का सुन्दर पठन किया गया जिसमे बतौर मुख्य अतिथि विवेक नारायण जनरल मैनेजर आई.ओ.सी.एल. पानीपत ने शोभा बढ़ाई । उनके साथ अरुण भार्गव डिप्टी म्युनिसिपल कमिश्नर पानीपत ने भी काव्य गोष्ठी में भाग लिया । कवि सम्मलेन में मनु बदाऊंनी, अनुपिंदर सिंह अनूप और इकबाल पानीपती ने ग़ज़ल, नरेश लाभ ने छंद, राजेश कुमार ने हास्य और अरविन्द भास्कर ने सामयिक कविता पेश की ।

मनु बदाऊंनी ने कहा ‘दौलत तो बढ़ी पर मेरा घाटा नहीं गया, चीखों से मेरे घर का सन्नाटा नहीं गया” । अनुपिंदर सिंह अनूप ने गाया ‘ग़ज़ल अपनी तुमको सुनाने से पहले, इजाजत तो ले लूँ ज़माने से पहले’ ‘उसे मैं मनाऊं तो कैसे मनाऊं , जो खुद मान जाए मनाने से पहले’ । अरविन्द भास्कर ने अपनी कविता ‘आवाज़’ में लिखा ‘खुदा यूँ हमें जब देखता होगा, सच में, वह, कितना रोता होगा’ । मनु बदाऊंनी ने गाया ‘ग़मों को अब कोई ऐसे छुपाने लगता है, हो जब भी भीड़ में कुछ गुनगुनाने लगता है’ और ‘ न जाने किसने दिल को पान की ये शक्ल दे डाली, जिसे मौका मिले चूना लगाने लगता है’ । नरेश लाभ ने कहा ‘भाषा हिंदी बोलिए बढे देश की शान, सुन्दर इसका व्याकरण करे आप गुणगान, करें आप गुणगान देश हित करिए चिंतन, होगी भाषा सुदृढ़ ह्रदय से करिए वंदन’ । राजेश कुमार ने कहा ‘सतत प्रयास रत, देश को तरक्की मिले, आई.ओ.सी. कर्तव्य से सदा प्रतिबद्ध है, ये पुन पुनरुत्थान शील देश की प्रेरक शक्ति, रस्श्त्र के अभ्युदय में सदा ही सन्नद्ध है’ ।
मेहमानों का स्वागत कॉलेज नरेश कुमार सचिव श्री एसडी एजेकेशन सोसाइटी (रजि.) प्रधान दिनेश गोयल, कोषाध्यक्ष विशाल गोयल प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा, डॉ संगीता गुप्ता, डॉ संतोष कुमारी और डॉ राकेश गर्ग ने शाल, पौधा रोपित गमले और पुस्तकें भेंट करके किया । मंच संचालन जन सम्पर्क अधिकारी राजीव रंजन ने किया । कार्यक्रम में व्यवस्था और अनुशासन की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवकों ने अदा की । सात दिन से जारी पुस्तक मेले में देशभर से आये 40 से अधिक प्रकाशकों ने हज़ारों की संख्या में अपनी पुस्तकों को प्रदर्शित किया और 12 लाख रूपये से अधिक की पुस्तकों की बिक्री की गई । भारी बरसात के बावजूद पुस्तक मेले के अंतिम दिन भी खरीदारों और पुस्तक प्रेमियों का तांता लगा रहा ।
डॉ सांत्वना शर्मा राजकीय मेडिकल डिस्पेंसरी पंचकूला ने अपने व्याख्यान में आयुर्वेद में वनस्पतियों प्राप्त होने वाली औषधियों और उचित आहार पर विस्तार से चर्चा की । उन्होनें कहा कि पारंपरिक भारतीय चिकित्सा या आयुर्वेद पुन: तेजी से लोकप्रिय हो रही है और कई पुरानी स्थितियों पर इसका अच्छा असर हो रहा है । कुदरत के दिये गये वरदानों में पेड़-पौधों का महत्वपूर्ण स्थान है । पेड़-पौधे मानवीय जीवन चक्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । वे न सिर्फ हमारी भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ती करते है बल्कि वे जीव जगत से नाजुक संतुलन बनाने में भी आगे रहते हैं । इनकी उपयोगिता को देखते हुए इनको अनेक संवर्गों में बांटा गया है। इनमें औषधीय पौधे अपना एक अलग ही औषधीय महत्व रखते हैं । हमारे शरीर को निरोगी बनाये रखने में औषधीय पौधों का अत्यधिक महत्व होता है और यही वजह है कि भारतीय पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं महाभारत जैसे प्रमाणिक ग्रंथों में इसके उपयोग के अनेक साक्ष्य मिलते हैं । यही नहीं, जंगलों में अपने आप उगने वाले अधिकांश औषधीय पौधों के अद्भुत गुणों के कारण लोगों द्वारा इसकी पूजा-अर्चना तक की जाने लगी है जैसे तुलसी, पीपल, आक, बरगद तथा नीम इत्यादि । प्रसिध्द विद्वान चरक ने तो हर प्रकार के औषधीय पौधों का विश्लेषण करके बीमारियों में उपचार हेतु कई अनमोल किताबों की रचना की है जिसका प्रयोग आजकल मानव का कल्याण करने के लिए किया जा रहा है । आयुर्वेद स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है कि कुछ आहार और उनके संयोजन, जो ऊतक के चयापचय को बाधित करते हैं एवं ऊतक के गठन की प्रक्रिया को रोकते हैं और जिनमें ऊतक के विपरीत गुण होते हैं उन्हें विरुद्ध अन्न या असंगत आहार कहा जाता है । आधुनिक युग की बीमारियों जैसे मधुमेध, उच्च रक्तचाप, थायरायड आदि का कारण बेमेल भोजन ही है । उन्होनें सुबह उठते ही खाली पेट पानी पीने को भी स्वास्थ्य ख़ास तौर पर पेट के लिए ठीक नहीं बताया । उन्होनें विरुद्धाहार को देश की दृष्टि से, मौसम की दृष्टि से, पाचक-अग्नि की दृष्टि से, मात्रा की दृष्टि से, दोषों की दृष्टि से, संस्कार या पाक की दृष्टि से, वीर्य की दृष्टि से और पाचन के आधार से विस्तार से समझाया । उन्होनें कहा कि ढूध और मछली, दही और नमक, शहद और घी एवं गरम पानी, दही और खीरा, पानी के साथ तरबूज एवं खरबूजा इत्यादि हमें कभी भी साथ नहीं लेने चाहिए ।

डॉ यामिनी गुप्ता राजकीय हस्पताल पंचकूला ने ‘स्वस्थ जीवन शैली के लिए पंचकर्म’ विषय पर बोलते हुए कहा कि पंचकर्म नाम का शाब्दिक अर्थ है ‘पांच क्रियाएं’ जो इस तथ्य को देखते हुए उपयुक्त है कि यह तकनीक शरीर को नियंत्रित करने वाली पांच विशिष्ट बुनियादी गतिविधियों पर निर्भर करती है जिन्हें हम वमन, विरेचन, निरुहम, अनुवासन और नास्यम कहते है । दूसरे शब्दों में पंचकर्म उपचार तकनीक एक स्तंभ है जिस पर अधिकांश आयुर्वेदिक तकनीकें टिकी हुई हैं । उर्ध्व मार्ग से दोषों का निर्हरण वमन कहलाता है । अर्थात उल्टी करा कर मुख द्वारा दोषों का निकालना वमन कहलाता है । वमन को कफ दोष की प्रधान चिकित्सा कहा गया है । वमन श्वास, कास, प्रमेह, पांडु रोग (एनीमिया), मुख रोग अर्बुद आदि में काम आता है । गुदामार्ग मलमार्ग से दोषों को निकालना विरेचन कहलाता है । विरेचन को पित्त दोष की प्रधान चिकित्सा कहा जाता है । और इसमें शिरः शूल, अग्निदग्ध, अर्श, भगंदर, गुल्म, रक्त पित्त आदि का इलाज़ किया जाता है । वस्ति वह क्रिया है जिसमें गुदमार्ग, मूत्रमार्ग, अपत्यमार्ग, व्रण मुख आदि से औषधि युक्त विभिन्न द्रव पदार्थों को शरीर में प्रवेश कराया जाता है । मूत्र मार्ग तथा अपत्य मार्ग से दी जाने वाली वस्ति उत्तर वस्ति कहलाती है तथा व्रण मुख (घाव के मुख) से दी जाने वाली वस्ति व्रण वस्ति कहलाती है । नासिका द्वारा जो औषधि प्रयुक्त होती है उसे नस्य कहते हैं । नस्य को गले तथा सिर के समस्त रोगों की उत्तम चिकित्सा कहा गया है । और इसमें 1 से 2 या फिर 8 से 10 बूंदों का इस्तेमाल होता है । आजकल मनुष्य का जीवन अधिकाधिक यांत्रिक होता जा रहा हैं । अत्यधिक गतिमान जीवन में मानव के आहार-विहार में अनियमितता आ गयी हैं । जिस तरह समय-समय पर कार या साइकिल जैसे यंत्रों के ठीक से चलने के लिए सर्विसिंग की जरुरत होती है उसी तरह हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर की पंचकर्मों द्वारा शुद्धि भी जरुरी हैं ।
दिनेश गोयल प्रधान ने कहा कि छात्रों की पसंद और पढ़ने के प्रति प्रेम को पुस्तकें ही स्थापित करती है । लोगों में पुस्तकों के प्रति रुचि बढे और शिक्षा अधिक अर्थपूर्ण हो यह भी इसका मकसद है । लोगों के बीच किताबों के प्रति प्रेम को बढ़ाने के लिए पुस्तक मेले को लगाया गया जो अत्यधिक सफल प्रयास रहा ।
डॉ अनुपम अरोड़ा ने कहा कि सात दिवसीय राज्य स्तरीय पानीपत महोत्सव और पुस्तक मेला पानीपत के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक नई इबारत लिखेगा । वर्तमान के युग में जिस प्रकार से मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं का गिराव हो रहा ऐसे में यह महोत्सव नए मूल्यों को समाज में स्थापित करेगा इसकी उन्हें पूरी उम्मीद है । कॉलेज में पुस्तक मेले को आयोजित करने का उद्देश्य पुस्तक उद्योग में प्रकाशकों, लेखकों और पाठकों को एक साथ लाना होता है ताकि पुस्तकों का प्रदर्शन लोगों को पढ़ने के प्रति और प्रोत्साहित करे ।
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