Sunday, June 15, 2025
Newspaper and Magzine


फसल अवशेष प्रबंधन पर पाँच दिवसीय  प्रशिक्षण कार्यक्रमों के समापन समारोह का आयोजन किया गया।

By LALIT SHARMA , in DIPRO PANIPAT PRESS RELEASE , at May 28, 2025 Tags: , , , ,

BOL PANIPAT : 28 मई। चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र, ऊझा, पानीपत में फसल अवशेष प्रबंधन पर पाँच दिवसीय  प्रशिक्षण कार्यक्रमों के समापन समारोह का आयोजन किया गया। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विषय मशीनो द्वारा फ़सल अवशेषों का प्रबंधन था जिसमें पूरे पानीपत जिले के 75 किसानों ने भाग लिया। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य किसानों को फ़सल अवशेषों के प्रबंधन की विभिन्न तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण देना था।
    कृषि विज्ञान केंद्र के पूर्व वरिष्ठ संयोजक डॉक्टर हरि राम मलिक ने बतौर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। उन्होने फ़सल अवशेषों से बनाए जा सकने वाली कंपोस्ट को बनाने की विधि के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि खेत में पराली को आग लगाने से मिट्टी में विद्यमान् सूक्ष्म जीवों और  केंचुओ की संख्या में बहुत नुक़सान होता है जिससे मिट्टी की उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा उन्होंने फ़सल अवशेष प्रबंधन के अन्य विकल्पों जैसे पराली से बायो गैस उत्पादन, मशरूम उत्पादन, पैकिंग सामग्री के रूप में फसल अवशेषों के उपयोग आदि पर भी प्रकाश डाला।
    केंद्र के संयोजक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर सतपाल सिंह ने बताया कि गेहूं-धान फ़सल चक्र में काफ़ी मात्रा में फसलों अवशेष उत्पन्न होते हैं। गेहूं की प्रणाली पशुओं के चारे के तौर पर इस्तेमाल की जाती है व इसका प्रबंधन करने के लिए डेढ़ महीने का समय भी मिल जाता है इसलिए गेहूं की पराली प्रबंध में समस्या नहीं आती। लेकिन धान की लंबी अवधि की किस्मों की कटाई और गेहूं की बुवाई में सिर्फ़ 15 दिन का ही समय मिलता है व पराली के चारे के रूप में कम इस्तेमाल से धान की पराली प्रबंधन एक चुनौती हैं।
  उन्होंने बताया की धान की कम अवधि की किस्मों जैसे पी बी 1509, पी बी 1692 आदि की बुआई से धान की पराली प्रबंधन के लिए लगभग एक महीने का पर्याप्त समय मिल जाता है इसलिए उन्होंने किसानों से अपील की कि वे जल संरक्षण तथा पराली न जलाने के लिए खुद भी प्रेरित हो व और साथी किसानों को भी जागरूक करें ताकि हम होने वाली पीढिय़ों के लिए एक वातावरण बचा सके।
    केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर सुनील ने पुराणी के यथासंभव संभव प्रबंधन द्वारा मृदा स्वास्थ्य पर होने वाले सकारात्मक प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने मृदा संरक्षण व गेहूं की बुवाई में इस्तेमाल होने वाली मृदा संरक्षण केंद्रित मशीनों जैसे ज़ीरो ट्रिल ड्रिल, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर के बारे में बताया व उनके  प्रयोग से मृदा के भोतिक गुणों में होने वाले सुधार के बारे में विस्तार से बताया।  
    वेज्ञानिक डॉ मोहित सहल ने विभिनं मशीनों के द्वारा किए जाने वाके पराली प्रबंधन से होने वाले आर्थिक लाभों के बारे में विस्तार से जानकारी दी व उन्हे पराली से होने वाले विभिन्न व्यवसाओ व उन्मे मिलने वाली सब्सिडी के बारे में बताया। इस मौके पर डॉ कुलदीप, डॉ राजेश, डॉ सीमा, डॉ सुधीर, प्रगतिशील किसान पलविन्द्र, राकेश, हरदीप, नीरज आदि ने भी अपने विचार साँझा किए।

Comments