एसडी पीजी कॉलेज पानीपत की राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के 127वें जन्म एवं पराक्रम दिवस को श्रद्धा और आदर भाव के साथ मनाया.
–एन.एस.एस. स्वयंसेवकों और छात्र-छात्राओं ने ली देश, समाज और समस्त मानव कल्याण की शपथ
–छात्र-छात्राओ को नेताजी की तरह हिम्मती, निडर और अनुशासक बनना चाहिए: दिनेश गोयल
BOL PANIPAT , 23 जनवरी,
एसडी पीजी कॉलेज पानीपत की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाइयों द्वारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के 127वें जन्म एवं पराक्रम दिवस को श्रद्धा और आदर भाव के साथ मनाया । इस अवसर पर कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने नेताजी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किये और उनके प्रति अपने गहरे भावो को व्यक्त किया । इस मौके पर कॉलेज प्रधान दिनेश गोयल और प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने विद्यार्थियो को संबोधित किया । उनके साथ एन.एस.एस. प्रोग्राम ऑफिसर डॉ राकेश गर्ग, डॉ संतोष कुमारी, डॉ एसके वर्मा, प्रो मनीष, प्रो विशाल गर्ग, प्रो मनोज कुमार, दीपक मित्तल, चिराग सिंगला उपस्थित रहे । विद्यार्थियो ने सुभाष चन्द्र बोस के जीवन, व्यक्तित्व और उनके द्वारा किये कार्यो को अपने प्राध्यापको से जाना और नेताजी के बताये मार्ग पर चलने का प्रण लिया । इस अवसर पर स्वयंसेवकों और छात्र-छात्राओं ने अपने प्राध्यापकों संग देशभक्ति के भाव लिए रैली में हिस्सा लिया । ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘शहीद सुभाष चन्द्र बोस अमर रहे’, ‘भारत माता की जय’ के उदघोष लगाते जब युवा विद्यार्थी कॉलेज से निकले तो उनका जज्बा देखते ही बनता था ।
दिनेश गोयल प्रधान ने अपने सन्देश में कहा कि भारत सुभाष चंद्र बोस की हिम्मत और अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई में उनके अमूल्य योगदान के कर्ज को हम कभी नहीं उतार सकते है । सुभाष चंद्र बोस भारतीयों की उन्नति और कल्याण के लिए सैदेव तत्पर रहे । साहसी स्वतंत्रता सेनानियों और विचारको में नेताजी का नाम सबसे आगे है । वैसे तो देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अनेक महापुरुष हुए हैं परन्तु महात्मा गाँधी के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस देशभक्तों के देशभक्त थे । स्वामी विवेकानंद को अपना आर्दश और गाँधी जी से प्रभावित होकर सुभाष ने अपनी प्रतिष्ठित नौकरी को छोङकर असहयोग आंदोलन में शामिल होना पसंद किया । आईसीएस की परीक्षा पास करके भी सरकारी नौकरी छोड़ने वाले देश के सबसे पहले व्यक्ति सुभाष चन्द्र बोस ही थे । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फौज के संस्थापक और ‘जय हिन्द’ और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’ का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया जिसके लिए उन्हें अपने जीवन में 11 बार जेल जाना पड़ा । नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज में एक महिला बटालियन भी गठित की जिसका नाम उन्होंने रानी झांसी रेजिमेंट रखा और कैप्टन लक्ष्मी सहगल को इसकी कमान दी । छात्र-छात्राओ के लिए नेताजी एक मिसाल है और उन्हें उनकी ही तरह हिम्मती, निडर और अनुशासक बनना चाहिए । सारा देश नेताजी का हमेशा ऋणी रहेगा ।
प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने कहा कि 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक शहर में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1943 को सिंगापुर में आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की प्रांतीय सरकार बनाई जिसे जब जापान, जर्मनी, इटली और उसके तत्कालीन सहयोगी देशों का समर्थन मिला तो भारत में अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिल गई । महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया जाता है लेकिन शायद ही किसी को इस बात का पता है कि उन्हें यह उपाधि किसने दी थी? महात्मा गांधी को सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर के रेडियो सन्देश में राष्ट्रपिता कहा था । स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चंद्र बोस हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं । नेताजी आज भी हमारे ह्रदय में बसते हैं । देश को आजादी दिलाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है । युवाओं को नेताजी के पदचिह्नों पर चलकर देश सेवा में अपना योगदान करना चाहिए । आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहास में ऐसा कोई भी दृष्टांत नहीं मिलता है जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने ही देश की आजादी के लिए एक प्रबल संघर्ष छेड़ा हो । इसका श्रेय भी नेताजी को ही जाता है ।
डॉ राकेश गर्ग ने कहा कि नेताजी आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है और आगे भी रहेंगे । युवाओं को उनके जीवन और मूल्यों को ह्रदय में उतारना चाहिए । उन्होनें विद्यार्थियों को देश और समाज हित में कार्य करने के लिए प्रेरित किया ।
इस अवसर पर स्टाफ सदस्यों, स्वयंसेवकों और विद्यार्थियो ने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ ली ।
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