नाम जप से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं: श्री रामायणी जी
BOL PANIPAT : श्री प्रेम मन्दिर पानीपत का 105 वां वार्षिक प्रेम सम्मेलन परम पूज्य श्री श्री 1008 श्री मदन मोहन जी हरमिलापी महाराज परमाध्यक्ष श्री हरमिलाप मिशन हरिद्वार की अध्यक्षता में एवं श्री प्रेम मन्दिर पानीपत की परमाध्यक्षा परम पूज्या श्री श्री 108 श्री कान्ता दवी जी महाराज के संयुक्त तत्वाधान में चल रहे प्रेम सम्मेलन का दूसरा दिन है।
आज का सत्र कुमारी मीनाक्षी जी ने श्री कृष्ण भगवान के संकीर्तन से प्रारम्भ हुआ। उन्होंने ऐसा रस बरसाया कि सारी संगत कृष्णमय होकर नृत्य करने लगी।
अयोध्या धाम से पधारे श्री रामायणी जी ने बताया प्रभु नाम को जपते रहना चाहिए।नाम जप से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और उसका जीवन एक उदाहरण बन जाता है। श्री गंगाधाम पानीपत से पधारे श्री निरंजन पाराशर जी ने प्रेमा भक्ति पर अपने विचार रखे। इसमें विशेष रूप से भरत जी का श्रीराम के प्रति प्रेम की व्याख्या की। जब भरत जी चित्रकूट में श्रीराम को अयोध्या वापिस लाने के लिए गये तो वे किसी रथ आदि पर सवार न होकर पैदल ही चले। क्योंकि जब प्रभु राम वन में पैदल गये तो सेवक के लिए सवारी करना कैसे उचित होगा। उन्होंने बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहा “सिर भर जांऊ उचित अस मोरा सब ते सेवक धरम कठोरा।” प्रभु से प्रेम में बाधायें भी बहुत आती हैं।। प्रेम को निभाना इतना आसान नहीं है। हनुमान जी जब लंका जा रहे थे तो देवताओं ने सुरसा को भेज कर उनकी परीक्षा ली। अपने प्रवचन में स्वामी जी ने कहा कि यदि कोई अपने गृहस्थ के कर्तव्यों को पूरा किए बिना घर से भाग कर सन्यासी का वेष धर लेता है तो वह एक प्रकार की जेल भुगतने के लिए जाता है। वह न तो सन्यास धर्म का पालन कर सकता है और गृहस्थ से वैसे ही भाग कर आया है। सन्यासी का धर्म है कि वह किसी से कुछ भी न मांगे और जो भी मिल जाये उसे स्वीकार करे। उसका वह स्वीकार न करना भी अनुचित कहा गया है। उन्होंने बताया कि विवाह का उद्देश्य प्रभु के आदेश अनुसार सन्तान उत्पत्ति तक तो उचित है। परन्तु आज की युवा पीढ़ी विवाह को भोग व कामवासना की पूर्ति के लिए ही समझती है। इसी कारण आने वाली संतान संस्कारों से रहित होती जा रही है।
संध्या के सत्र में श्री ठाकुर जी का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। ठाकुर जी के साथ सारे भक्तों ने फूल होली खेलकर वातावरण को रसमय तथा रंगमय बना दिया।
परमपूज्या गुरूदेव जी ने अपने आशीष में कहा कि नाम के आनन्द को हर कोई नहीं समझ सकता। जिसे इसका रस आने लगता है वह इसमें डूब जाता है और वही इसका आनन्द भी उठाता है। इस पर सन्तों ने कहा हैः
“इस रस ताईं सोई जाणदा हे पिया नाल जिसदी मुलाकात होवे।
भला ओ की इस रस नूं जाणदा हे पीया न जिस आब हयात होवे।।”
उन्होंने आगे बताया कि ब्रह्मलीन गुरूदेव प्रथम ने यहां इतना नाम जपा है कि आज भी उसको अनुभव किया जा सकता है। वे इस मन्दिर के कणकण में व्याप्त हैं।उनकी शक्ति अव्यक्त रूप में विद्यमान है। जो भी कार्य हो रहे हैं उनकी शक्ति व कृपा से हो रहे हैं। वरना हमारी क्या औकात है?
इस अवसर पर चरणजीत रत्रा, सुरेश अरोड़ा, रमेश असीजा, जीत रेवड़ी, हिमांशु असीजा, आशुे असीजा, के.एल. ढींगड़ा, गौतम दुआ, अनिल नन्दवानी आदि उपस्थित रहे।
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