एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में अंग्रेजी विभाग की लिटरेरी माइंडस सोसाइटी के तत्वाधान में ‘गाइड’ फिल्म को दिखाया गया
–एमए अंग्रेजी और अंग्रेजी आनर्स के पाठ्यक्रम में शामिल है आरके नारायण कृत ‘द गाइड’ उपन्यास
–शिक्षा में फिल्म एक शक्तिशाली माध्यम है जो छात्रों को ज्ञान और कौशल सरलता से सिखाती है: प्रो अन्नू आहूजा
BOL PANIPAT , 27 मार्च 2025,
एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में अंग्रेजी विभाग की लिटरेरी माइंडस सोसाइटी के तत्वाधान में ‘गाइड’ फिल्म को दिखाया गया जो एमए अंग्रेजी और अंग्रेजी आनर्स के पाठ्यक्रम का हिस्सा है और यह फिल्म आरके नारायण कृत ‘द गाइड’ उपन्यास पर आधारित है । फिल्म देखने के लिए एमए और आनर्स के विद्यार्थी लालायित नज़र आये । कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा और अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष प्रो अन्नू आहूजा ने की । उनके साथ डॉ संतोष कुमारी, डॉ एसके वर्मा, डॉ मोनिका खुराना, प्रो डेनसन डी पॉल, प्रो मणि, प्रो मानवी और प्रो मानसी ने छात्र-छात्राओं के साथ इस फिल्म को देखा । असल में आरके नारायण का पहला उपन्यास ‘द गाइड’ 1958 में प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास के माध्यम से आरके नारायण ने अपने कुशल लेखन से एक ‘राजू’ नाम के किरदार की टूर गाइड से आध्यात्मिक गाइड और फिर भारत के सबसे महान तथा पवित्र व्यक्तियों में से एक होने की यात्रा का वर्णन किया गया है । फिल्म में आरजू की भूमिका देव आनन्द और रोजी की भूमिका वहीदा रहमान ने अदा की है । ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’, ‘दिन ढल जाये हाये रात न जाए’, ‘गाता रहे मेरा दिल टू ही मेरी मंजिल’, ‘पिया तोसे नैना लागे रे’ जैसे गीतों से सज्जित इस फिल्म ने न सिर्फ विद्यार्थियों पर एक अनूठी छाप छोड़ी बल्कि उन्हें इस उपन्यास की बारीकियां भी समझ में आई । 1965 में बनी फिल्म ‘गाइड’ के निर्देशक विजय आनंद, निर्माता देव आनंद, संगीतकार एस.डी. बर्मन और गीतकार शैलेंद्र हैं ।
प्रो अन्नू आहूजा ने कहा कि उपन्यास के शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक सहज अंदाज़ा लगा सकते हैं । इस उपन्यास का नाम ‘द गाइड’ है और इसका अर्थ होता है मार्गदर्शन करने वाला । यह कहानी भी ऐसे ही नायक पर आधारित है जो एक टूर गाइड होने के बाद एक आध्यात्मिक गाइड बनने की यात्रा तय करता है । इस उपन्यास ने नारायण को भारत की राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा 1960 में अंग्रेजी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलाया । इसी उपन्यास को वर्ष 2022 में एलिजाबेथ द्वितीय की प्लैटिनम जुबली मनाने के लिए चुने गए राष्ट्रमंडल लेखकों की 70 पुस्तकों की ‘बिग जुबली रीड’ सूची में शामिल किया गया था । यह उपन्यास अपने आप में बहुत ही जानदार कृति है । शिक्षा में फिल्म एक शक्तिशाली माध्यम है जो छात्रों को ज्ञान और कौशल सिखाने में आसानी से मदद करती है खासकर दृश्य-श्रव्य सामग्री के माध्यम से ।
डॉ अनुपम अरोड़ा ने कहा कि फिल्मों का उपयोग करके शिक्षक छात्रों को विभिन्न विषयों को बेहतर ढंग से समझने, याद रखने और संलग्न करने में मदद कर सकते हैं । फिल्में जटिल विषयों को सरल और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत कर सकती हैं जिससे छात्रों को उन्हें समझने में मदद मिलती है । ये दृश्य और श्रव्य दोनों सामग्रियों को एक साथ प्रस्तुत करती हैं शिक्षार्थियों के लिए फायदेमंद साबित होती है । फिल्में छात्रों को विभिन्न विषयों पर चर्चा करने और अपनी राय व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं और पाठ्यपुस्तक की सामग्री को पूरक करती हैं । छात्रों को विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों से अवगत कराना भी फिल्मों का एक काम है । किसी भी नई भाषा को सीखने और अपनी भाषा कौशल को बेहतर बनाने में फिल्में हमारी खूब मदद करती हैं । छात्रों को विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने में ये भरपूर मदद करती हैं । फिल्में छात्रों को प्रेरित करती हैं और उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा देती हैं । पाठ्यक्रम को फिल्मों और मीडिया के माध्यम से पढ़ाना बहुत ही लाभकारी है ।
‘द गाइड’ उपन्यास की कहानी का नायक राजू जिसका उपनाम ‘रेलवे राजू’ है जो कि एक लोकप्रिय टूर गाइड है । उसे रोज़ी नाम की एक खूबसूरत नर्तकी से प्यार हो जाता है जिसकी शादी मार्को नामक व्यक्ति से होती है जो कि एक पुरातत्वविद् है । वे दोनों पर्यटक के रूप में मालगुड़ी का दौरा कर रहे हैं । हालाँकि मार्को रोज़ी के नृत्य के प्रति जुनून को अस्वीकार करता है । राजू के प्रोत्साहन से रोज़ी ने अपने सपनों को आगे बढ़ाने का फैसला किया और एक नर्तकी के रूप में अपना करियर शुरू किया । जैसे-जैसे वे एक साथ अधिक समय बिताते हैं राजू और रोज़ी करीब आने लगते हैं । राजू और रोजी के रिश्ते के बारे में जानने पर मार्को रोज़ी को मालगुडी में छोड़ देता है और अकेले मद्रास लौट आता है । रोज़ी राजू के घर में शरण लेती है और वे एक साथ रहने लगते हैं । हालाँकि राजू की माँ उनके रिश्ते को स्वीकार नहीं करती और उन्हें छोड़ देती है । राजू रोज़ी का स्टेज मैनेजर बन जाता है और अपनी मार्केटिंग रणनीति से रोज़ी भी एक सफल डांसर बन जाती है । परन्तु राजू का अहंकार बढ़ जाता है और वह धन की इच्छा से प्रेरित होकर वह रोज़ी के जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगता है । वह रोज़ी के हस्ताक्षर से संबंधित जालसाजी मामले में शामिल हो जाता है जिसमें राजू का अपराध पता चलने पर राजू को सजा से बचाने के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद उसे दो साल जेल की सजा सुनाई जाती है । अपनी सजा पूरी करने के बाद राजू मंगल नामक गाँव से गुजरता है जहाँ उसे गलती से एक साधु (एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक) समझ लिया जाता है । अपमान में मालगुडी लौटने से बचने के लिए वह मंगल के पास एक परित्यक्त मंदिर में रहने का फैसला करता है । वहां वह एक साधु की भूमिका में उपदेश देता हैं और ग्रामीणों की दैनिक समस्याओं और विवादों को सुलझाता हैं । कुछ समय बाद गाँव में अकाल पड़ जाता है और गाँव वालों को विश्वास हो जाता है कि राजू के उपवास से बारिश हो सकती है । राजू अपने पूरे अतीत को वेलन के सामने स्वीकार करने का निर्णय लेता है क्यूंकि वेलन वही व्यक्ति है जिसने शुरू में उसे मंदिर में खोजा था और बाकी ग्रामीणों की तरह उस पर अटूट विश्वास रखा था । हालाँकि वेलन स्वीकारोक्ति से अपरिवर्तित रहता है और राजू उपवास जारी रखने का संकल्प करता है । जैसे ही राजू के अनशन की खबर मीडिया में फैलती है वहां एक बड़ी भीड़ तमाशा देखने के लिए इकट्ठा हो जाती है जिससे राजू बहुत परेशान हो जाता है । अपने उपवास के ग्यारहवें दिन की सुबह वह अपने दैनिक अनुष्ठान के हिस्से के रूप में नदी के किनारे जाता है । उसे दूर की पहाड़ियों में हो रही बारिश का एहसास होता है और वह पानी में गिर जाता है । अब क्या वास्तव में बारिश हुई या क्या राजू की मृत्यु हो गई इसको जानने के लिए हम सभी को इस उपन्यास कप अवश्य पढ़ना चाहिए ।
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